About The Book
यह पुस्तक उन हिंसक घटनाओं को दर्शाती है जो मुंबई में रेलवे की परीक्षा देने गए बिहार और उत्तर प्रदेश के छात्रों के साथ घटित हुई थीं। यह भारत के इतिहास का काला दिन था जब स्थानीय गुंड़ों ने छात्रों पर हमला कर उन्हें गम्भीर रूप से घायल कर दिया था और छात्रों को बिना परीक्षा दिए ही वापस लौटना पड़ा था। यह पुस्तक इस बात का समर्थन करती है कि अब समय आ गया है जब हमें गम्भीरता से अपनी पहचान को परिभाषित करना होगा। यह उपन्यास, कहानी के मुख्य चरित्रा एक नवयुवक बिहारी प्रभाष चन्द्र की बिहार के दरभंगा से मुंबई तक की उतार-चढ़ाव भरी एक साहसिक यात्रा का वर्णन करता है।
यह पुस्तक मराठी अस्मिता, मराठी मानुष और बिहारी अस्मिता की अवधरणाओं का विश्लेशण करने पर मजबूर करती है जब आज के अशांत समय में श्रेत्राीय पहचान ने भारतीय राष्ट्रवाद की धरणा को बौना साबित कर दिया है। प्रभाष चन्द्र अपने साथी बिहारी भाइयों से आह्नान करता है कि आओ हम सब मिलकर जातिवाद के अभिशाप से ऊपर उठंे और बिहारी के रूप में अपनी समान पहचान को पहचानंे क्यांेकि बिहार के विकास और उत्थान का यही एक मात्रा मूल मंत्रा है। बिहार का विकास - भारत का विकास।